खादी तथा ग्रामोद्योग बोर्ड द्वारा जिला सेक्टर की मुख्यमंत्री ग्रामोद्योग रोजगार योजना तथा खादी और ग्रामोद्योग आयोग की ग्रामाद्योग रोजगार योजना संचालित की जा रही है।
मुख्य मंत्री ग्रामोद्योग रोजगार योजना(जिला सेक्टर)
खादी आयोग का ग्रामीण रोजगार सृजन कार्यक्रम (मार्जिन मनी योजना)
1.
माघ्यम
राष्ट्रीय/क्षेत्रीय ग्रामीण/सहकारी बैंक
राष्ट्रीय/क्षेत्रीय ग्रामीण/बैंक
2.
ऋण की अधिकतम सीमा
रू० 5.00 लाख
रू० 25.00 लाख
3.
उद्यमी का अंश
परियोजना लागत का 10%
सामान्य लाभार्थियों हेतु 10% तथा अनु० जाति/जनजाति, पिछड़ा वर्ग, अल्पसंख्यक,महिला,विकलांग एवं भूवपूर्व सैनिक हेतु 5%
4.
ऋण पर ब्याज
बैंक द्वारा निर्धारित
बैंक द्वारा निर्धारित
5.
उद्यमी द्वारा देय ब्याज
4%
बैंक द्वारा निर्धारित
6.
ब्याज उपादान
4% से अधिक
--
7.
ऋण वसूली की अवधि
बैंक द्वारा निर्धारित
बैंक द्वारा निर्धारित
8.
मार्जिन मनी सब्सिडी
--
सामान्य वर्ग के लिए रू० 10.00 लाख पर 25% एवं अन्य वर्गो के लिए 30% तथा रू० 10.00 लाख से अधिक रू० 25.00 लाख वक की परियोजना लागत पर 10%
9.
आवेदन पत्र की उपलब्धता
जिला ग्रामोद्योग कार्यालय
जिला ग्रामोद्योग कार्यालय
10.
ऋण आवेदन पत्र के साथ
ऋण आवेदन पत्र की दो प्रति
ऋण आवेदन पत्र की दो प्रति
11.
अपेक्षित प्रपत्र
शैक्षिक/तकनीकी योग्यता/ प्रशिक्षण प्रमाण पत्र, दो पासपोर्ट साईज फोटो उद्योग की बुकेबुल परियोजना ऋण की सुरक्षा हेतु जमानत के साक्ष्य आयु सीमा प्रमाण पत्र
शैक्षिक/तकनीकी योग्यता/प्रशिक्षण प्रमाण पत्र ग्राम प्रधान का प्रमाण पत्र, पासपोर्ट साईज फोटो, उद्योग की बुकेबुल परियोजना ऋण की सुरक्षा हेतु जमानत के साक्ष्य आयु सीमा के प्रमाण पत्र
नोट:- खादी तथा ग्रामोद्योग बोर्ड से आर्थिक सहायता प्राप्त करने हेतु सम्बन्धित जिले के जिला ग्रामोद्योग अधिकारी/परिक्षेत्र में परिक्षेत्रीय अधिकारियों से सम्पर्क कर पूर्ण जानकारी प्राप्त कर सकते हैं, तथा बोर्ड मुख्यालय से भी सम्पूर्ण जानकारी प्राप्त हो सकती है।
ग्रामीण औद्योगीकरण के क्षेत्र मे खादी तथा ग्रामोद्योग बोर्ड की अहम भूमिका है। इसका सीधा सम्बन्ध ग्रामीण अर्थव्यवस्था, अनुसूचित जाति/ जन जाति/, अल्पसंख्यक, महिलाओं, विकलांग, भूतपूर्व सैनिक एवं पिछड़े वर्ग के उत्थान से है।
ग्रामीण क्षेत्र में आज भी परम्परागत कौशल को बढ़ावा देने से विकास की अच्छी सम्भावना है। ग्रामीण अंचलों के शिक्षित बेरोजगार युवकों को प्रशिक्षित करके उन्हें अपने ही गाँव में मनपसन्द उद्योग स्थापित करने में बोर्ड आर्थिक सहायता प्रदान करता है।
खादी तथा ग्रामोद्योग की परिभाषाएं
"खादी" का अर्थ है कपास, रेशम या ऊन के हाथ कते सूत अथवा इनमें से दो या सभी प्रकार के सूत के मिश्रण से भारत में हथकरघे पर बुना गया कोई वस्त्र।
"ग्रामोद्योग" का अर्थ है, ऐसा कोई भी उद्योग, जो ग्रामीण क्षेत्र में स्थित हो तथा जो विद्युत के उपयोग या बिना उपयोग के कोई माल तैयार करता हो या कोई सेवा प्रदान करता हो तथा जिसमें पूँजी निवेश (संयंत्र तथा मशीनरी एवं भूमि भवन में) प्रति कारीगर या कर्मी पचास हजार रूपये से अधिक न हो। इस हेतु परिभाषित "ग्रामीण क्षेत्र" में समस्त राजस्व ग्राम तथा 20 हजार तक की आबादी वाले कस्बे सम्मिलित है।
ऋण सहायता सुविधा किसको ?
खादी तथा ग्रामोद्योग द्वारा दी जाने वाली सहायता सुविधा हेतु निम्न पात्र है:-
पंजीकृत ग्रामोद्योगी सहकारी समितियाँ।
पंजीकृत स्वयं सेवी संस्थाएं।
व्यक्तिगत उद्यमियों के साथ-साथ शिक्षित बेरोजगार नवयुवकों, महिलाओं, अनुसूचित जाति व जनजाति के सदस्य एवं परम्परागत कारीगर।
सहायता किन ग्रामीण उद्योगों हेतु दी जाती है?
खादी ग्रामोद्योग को 7 समूहों में बांटा गया है, जिसके अन्तर्गत निम्नलिखित उद्योग आते है:-
खनिज आधारित उघोग:-
कुटीर कुम्हारी उद्योग।
चूना पत्थर,चूना सीपी और अन्य चूना उत्पाद उद्योग।
मन्दिरों एवं भवनों के लिए पत्थर कटाई, पिसाई,नक्काशी तथा खुदाई।
पत्थर से बनी हुई उपयोगी वस्तुएं।
प्लेट और स्लेट पेंसिल निर्माण।
प्लास्टर आफ पेरिस का निर्माण।
बर्तन धोने का पाउडर।
जलावन के ब्रिकेट्स।
सोना चाँदी, पत्थर सीपी और कृत्रिम सामग्रियों से आभूषणों का निर्माण।
गुलाल, रंगोली निर्माण।
चूड़ी निर्माण ।
पेंट, रंजक, वार्निश और डिस्टेम्पर निर्माण।
काँच के खिलौने का निर्माण।
सजावटी शीशे की कटाई, डिजाइनिंग, पालिशिंग।
रत्न कटाई।
वनाधारित उद्योग:-
हाथ कागज उद्योग।
कत्था निर्माण।
गोंद और रेजिन निर्माण।
लाख निर्माण।
कुटीर दियासलाई उद्योग, पटाखे और अगरबत्ती निर्माण।
बांस और बेंत कार्य।
कागज से प्याले, तश्तरी, झोले ओर कागज के डिब्बे का निर्माण।
कापियों का निर्माण, जिल्दसाजी, लिफाफा निर्माण, रजिस्टर निर्माण और कागज से बनाई जाने वाली अन्य लेखन सामग्रियाँ।
खस टट्टी और झाडू निर्माण।
वनोत्पादों का संग्रह प्रशोधन एवं पैकिंग।
फोटो जड़ना।
जूट उत्पादों का निर्माण (रेशा उद्योग के अन्तर्गत)।
कृषि आधारित और खाद्य उद्योग:-
I. अनाज दाल, मसाला, चटपटे मसाले आदि का प्रशोधन, पैकिंग और विपणन।
II. ताड़ गुड़ निर्माण और अन्य ताड़ उत्पाद उद्योग।
III. गन्ना गुड़ और खाण्डसारी निर्माण।
IV. मधुमक्खी पालन।
V. अचार सहित फल और सब्जी का प्रशोधन, परिरक्षण एवं डिब्बाबन्दी।
VI. घानी तेल उघोग।
VII. नारियल जटा के अलावा रेशा।
VIII. औषधीय कार्यो हेतु जड़ी- बूटियों का संग्रह।
IX. मकई और रागी का प्रशोधन,
X. मज्जा चटाईयां और हारा आदि का निर्माण।
XI. काजू प्रशोधन।
XII. दोना बनाना।
XIII. नूडल निर्माण।
XIV. विद्युत चलित आटा चक्की।
XV. दलिया निर्माण।
XVI. चावल से छिलका उतारने की छोटी इकाई।
XVII. भारतीय मिष्ठान निर्माण।
XVIII. रसवन्ती-गन्ना रसपान इकाई।
XIX. मेन्थाल तेल।
XX. दुग्ध उत्पादन निर्माण इकाई।
XXI. पशु चारा, मुर्गी चारा निर्माण।
बहुलक और रसायन आधारित उद्योग:-
I. शवच्छेदन, चर्मशोधन तथा खाल व त्वचा से सम्बन्धित अन्य सहायक उद्योग एवं कुटीर चर्म उद्योग।
II. कुटीर साबुन उद्योग।
III. रबड़ वस्तुओं का निर्माण(डिप्ड लेटेक्स उत्पाद)।
IV. रैक्सीन/पी० वी० सी० के बने उत्पाद।
V. हाथी दाँत समेत सींग और हड्डी उत्पाद।
VI. मोमबत्ती, कपूर और मोहर वाली मोम का निर्माण।
VII. प्लास्टिक की पैकेजिंग, वस्तुओं का निर्माण।
VIII. बिन्दी निर्माण।
IX. मेंहदी निर्माण।
X. इत्र निर्माण।
XI. शैम्पू निर्माण।
XII. केश तेल निर्माण।
XIII. डिटर्जेन्ट और धुलाई पाउडर(अविषाक्त)
इंजीनियरिंग और गैर परम्परागत ऊर्जा:-
I. बढ़ईगीरी।
II. लोहारी।
III. अल्युमिनियम के घरेलू बर्तनों का उत्पादन।
IV. गोबर और अन्य उपशिष्ट उत्पाद जैसे मृत पशु के मांस और मल आदि से खाद और मीथेन(गोबर) गैस का उत्पादन और उपयोग।
V. कागज, क्लिप, सेफ्टी पिन, स्टोव पिन आदि का निर्माण।
VI. सजावटी बल्बों बोतलों, ग्लास आदि का निर्माण।
VII. छाता उत्पादन।
VIII. सौर तथा पवन ऊर्जा उपकरण।
IX. हस्त निर्मित पीतल के बर्तनों का निर्माण।
X. हस्त निर्मित तांबे के बर्तनों का निर्माण।
XI. हस्त निर्मित कांसे के बर्तनों का निर्माण।
XII. पीतल, तांबे और कांसे से अन्य वस्तुओं का निर्माण।
XIII. रेडियो निर्माण।
XIV. कैसेट प्लेयर का निर्माण चाहे वह रेडियो में लगा हुआ हो या न हो।
XV. कैसेट रिकार्डर का निर्माण।
XVI. वोल्टेज स्टेब्लाईजर का उत्पादन।
XVII. इलेक्ट्रानिक घड़ियों का निर्माण।
XVIII. लकड़ी पर नक्काशी एवं कलात्मक फर्नीचर निर्माण।
XIX. टीन कार्य।
XX. मोटर बाइंड़िग।
XXI. तार की जाली बनाना।
XXII. लोहे की झंझरी (ग्रिल) निर्माण।
XXIII. ग्रामीण यातायात वाहन जैसे हाथ गाड़ी, बैलगाड़ी, छोटीनाव, दुपहिया साइकिल/रिक्शा-मोटर युक्त गाडियों का निर्माण।
XXIV. संगीत साजों का निर्माण।
XXV. केचुआ पालन तथा कचरा निपटारा।
वस्त्रोद्योग (खादी को छोड़कर):-
I. पॉली वस्त्र यानी ऐसे वस्त्र जो भारत में मानव निर्मित रेशे की रूई-रेशम या ऊन के साथ या इसमें से किसी दो या सभी को मिलाकर हाथ से काता गया तथा हथकरघे पर बुना गया हो या भारत में बना ऐसा वस्त्र जो हाथ कते मानव निर्मित रेशा के धागों का सूती, रेशमी या ऊनी धागे या इसमें से किसी दो धागे या सभी धागों से मिलाकर हथकरघे पर बुना गया हो।
II. लाक वस्त्र का निर्माण।
III. होजरी।
IV. सिलाई और सिली सिलाई पोशाक तैयार करना।
V. हाथ से मछली मारने वाले नायलॉन/सूती जाल तैयार करना।
VI. छींटकारी।
VII. खिलौना और गुडियों का निर्माण।
VIII. कशीदरी।
IX. शल्य चिकित्सा पट्टी का निर्माण।
X. स्टोव की बत्तियाँ।
XI. धागे का गोला, ऊनी गोला तथा लच्छी निर्माण।
XII. पारम्परिक पोशाकें।
XIII. दरीं बुनाई।
सेवा उद्योग:-
I. धुलाई।
II. नाई।
III. नलसाजी।
IV. बिजली की वायरिंग और घरेलू इलेक्ट्रॉनिक्स उपकरण की मरम्मत।
V. डीजल इन्जनों , पम्पसेटों आदि की मरम्मत।
VI. टायर बल्कनीकरण (रिट्रीडिंग) इकाई।
VII. छिड़काव, कीटनाशक, पम्पसेटों आदि के लिए कृषि सेवा कार्य।
VIII. लाउडस्पीकर, घ्वनि प्रसारक, माइक आदि ध्वनि प्रणालियों को किराये पर देना।
IX. बैटरी भरना।
X. कलाफलक चित्रकारी।
XI. साइकिल मरम्मत की दुकानें।
XII. राजगीर।
XIII. ढाबा (शराब रहित) ।
XIV. चाय की दुकान।
XV. चिकन इम्ब्रायडरी।
XVI. बैंड मण्डली।
XVII. आयोडीन युक्त नमक।